Tuesday, December 4, 2018

कितनी यादें छिपी हैं उनकी खामोश आंखों में

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कितनी यादें छिपी हैं उनकी खामोश आंखों में,
डर लगता है कहीं उफ़क न पड़ें मेरे आने से ।

--------------हर्ष महजन

Monday, December 3, 2018

करता रहा उम्र-भर नफरत जिस शख्स से

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करता रहा उम्र-भर नफरत जिस शख्स से,
जुदा हुआ तो कतरा इक मेरी आँखों में था,

यत्न तो किये थे मैने कि उसे भूल ही जाऊँ, 
मगर क्या करूँ वो दिल की सलाख़ों में था ।

----------------हर्ष महाजन

Tuesday, October 2, 2018

जावेद अख्तर जी

फिल्मी जगत की कुछ कही अनकही बातें ।
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इस सीरीज में हम बात करेंगे फिल्मी जगत में घटी कुछ ऐसी घटनाओं की जिनकी जानकारी सिर्फ कुछ विरले ही लोगों के पास होगी । औऱ जहां तक उन हस्तियों की बात है जिनके बारे में घटनाओं का ज़िक्र है संभवत: वही होंगे जिनको मैं अभी तलक पसंद करता आया हूँ ।
क्योंकि मैं खुद एक लेखक हूँ ग़ज़ल कविताएं पटकथाएं कहानियां लिखना मेरा शौक है, सो मेरी पहली पसंद जिनके बारे में कुछ अनकही बातें मैं कहना चाहूंगा वो हैं श्री जावेद अख्तर साहब । इनके बारे में कुछ कहने से पहले कुछ और हस्तियों के बारे में बात करना में ज़रूरी समझता हूँ ।
         घटना उन दिनों की है जब हम दसवीं ग्याहरवीं कक्षा नें पढ़ा करते थे । सन था 1970-71 । बहुत से कलाकार फिल्मों में अपनी ऊंचाईयां बना चुके थे और कुछ बनाने में व्यस्त थे । उनमें से एक थे राजेश खन्ना साहब । उन्होंने 1969 से 1971 तक अपने फिल्मी carrier  की सबसे hit फिल्में फिल्मी जगत को दे चुके थे ।
     इसी बीच उन्होंने सुना राजेन्द्र कुमार साहब जो उस वक़्त की बुलंदियों को छू रहे थे अपना बंगला जिसका नाम उन्होंने अपनी बेटी के नाम पर रखा था "डिम्पल" बेच रहे हैं । क्योंकि राजेन्द्र जी अपने नए बंगले में शिफ्ट हो रहे थे ।
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राजेश खन्ना जी की अपनी फिल्म "हाथी मेरे साथी" में उन्होंने सलीम जावेद की जोड़ी को ब्रेक दिया।
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राजेश खन्ना जी उस वक़्त में खुद को उस वक़्त के बादशाह समझते थे । इसीलिए उस बंगले को खरीदने की ख़्वाहश रख दी । उस बंगले ने राजेन्द्र कुमार को बुलंदियां दी थी । राजेश खन्ना जी चाहते तो थे मगर कीमत को देख मन बैचैन हो उठा । 
उन्हीं दिनों एक south Indian producer ने एक 'हाथी' पर फ़िल्म offer ki. जिन्हें वो करना तो नहीं चाहते थे मगर उस बंगले को खरीदने के लिए पैसे की ज़रूरत थी । इसी खातिर खन्ना जी नेवो फ़िल्म accept कर ली ।
मगर उस फिल्म की स्क्रिप्ट को लेकर आश्वस्त नहीं थे ।
उन्होंने फिल्म के डायरेक्टर M A Thirumugam से इस बारे में बात की । अपनी शर्तों पर उस स्टोरी के Screen play writer की तलाश शुरू हुई ।
इसी बीच जावेद औऱ सलीम साहब की खन्ना जी से मुलाकात हुई ।
 but even after some rewrites, the script, involving elephants, didn’t offer anything meaningful to the him up to yet.
       In a bid to get something substantial, Khanna ji asked Salim Khan and Javed Akhtar to take a shot at Haathi Mere Saathi. They both were looking for independent credit too in those days.

Finally खन्ना जी offered them to write it's screenplay. उन्होंने कहा अगर उनको उनका स्क्रीनप्ले अच्छा लगा तो वो ओरों से ज़्यादा पैसा और शौहरत देंगे ।
फ़िल्म का original नाम "प्यार की दुनियाँ" से बदल कर "हाथी मेरे साथी" रखा गया, और ये फ़िल्म सुपर हिट हुई । इसी फिल्म से जावेद-सलीम की जोड़ी को ब्रेक मिला ।

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Sunday, July 8, 2018

आज सूना हो गया

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आज सूना हो गया दिल तेरे फिर* जाने के बाद,
सोचता हूँ होगा फिर क्या तेरे फिर आने के बाद ।

-------------------------हर्ष महाजन

*बदल

2122-2122-2122-212

Friday, May 4, 2018

क्यूँ न अश्कों का साथी बनूँ हमसफर

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क्यूँ न अश्कों का साथी बनूँ हमसफर,
जी रहा  बिन तेरे ज़िन्दगी का सफर ।
 आओ ठहरो तसव्वर में कुछ देर सँग,
हिज़्र कैसे सहूँ कैसे दूँ ये खबर ।

हर्ष महाजन
212/212/212/212

Thursday, March 1, 2018

आओ चढ़ा के रंग होली का मिला करें

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आओ चढ़ा के रंग.. होली... .का मिला करें,
दिल में जगा के प्यार को आओ...दुआ करें ।
नीला हो या पीला हो या हो रसंग अब लाल,
रिश्तों में सब मिला के नया सिलसिला करें ।

हर्ष महाजन


Wednesday, February 21, 2018

अटूट रिश्ता (नज़्म)

दोस्तो आपकी अदालत में एक नज़्म पेशे खिदमत है उम्मीद है इसे अपने प्यार से ज़रूर नवाजेंगे ।अगर अच्छी लगे तो दो शब्द ज़रूर कहियेगा ।

------------------अटूट रिश्ता (नज़्म)

वो दोस्ती का जज़्बा कभी दिखा न सका,
दुश्मन तो था मगर दुश्मनी निभा न सका ।

कुछ एक फसाने हकीकत में बदले ज़रूर,
मगर जलालत में कुछ भी वो बता न सका ।

इंतिहा-ए-जुदाई-ओ-गम सब सहे उसने,
पर समंदर जो आंखों में था छिपा न सका ।

नाम ले ले कर मेरा बहुत कोसा किये था वो
कितना पागल था नफरत भी जता न सका ।

टूटकर चाहेगा वो ऐसा कभी कहा था उसने,
वो शख्स, जैसा भी था मैं भी भुला न सका ।

-------------------हर्ष महाजन

Tuesday, February 20, 2018

यूँ न आंखों से बातें किया कीजिये


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यूँ न आँखों से बातें किया कीजिये,
इश्क़ का यूँ सबक न दिया कीजिये ।

हम तो नादान हैं प्यार में कुछ सनम,
तुम ख़बर कुछ तो दिल की लिया कीजिये ।

गम की ग़ज़लें चलें अश्क़ तुम थाम कर,
टूटे दिल को न यूँ ही सिया कीजिये ।

हम तो डरते हैं बदनामी से शह्र में,
ज़िक्र तुम इश्क का न किया कीजिये |


गम की गहराइयों से जो गुज़रो कभी,
इल्तिज़ा अश्क तुम न पिया कीजिये ।

फ़ासला दरमियाँ अब हमारे कहाँ,
फ़ासलों में सनम न ज़िया कीजिये ।

जब भी आँखों से टपके नशा प्यार का,
हम नज़र से पिलायें पिया कीजिये ।

----------------हर्ष महाजन

बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम
212 212 212 212

1) मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र
जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया

2) हर तरफ़ हर ज़गह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी.

काश आज भी पुराना जमाना होता,


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काश आज भी......पुराना जमाना होता,
तुझ संग मेरा भी....इक अफसाना होता ।
कुछ भी बदल लेते..हाथों की लकीरों में,
पर ज़िन्दगी का सफर खूब सुहाना होता ।

----------------हर्ष महाजन

Monday, February 19, 2018

इश्क़ तक तुझे तैयार करूँ ज़ायज़ नहीं लगता


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इश्क़ तक तुझे तैयार करूँ ज़ायज़ नहीं लगता,
अनचाहा फिर खुमार भरूँ ज़ायज़ नहीं लगता ।
चाहत तो है तेरे हुस्न का दीदार कर लूँ मगर,
दहलीज़ पे इंतज़ार करूँ...ज़ायज़ नहीं लगता ।

----------------हर्ष महाजन

हद से ज़्यादा प्यार करना भी गुनाह हो गया


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हद से ज़्यादा प्यार करना भी गुनाह हो गया,
वो रिश्ता कुछ यूं बना कि घर तबाह हो गया ।

------------------------हर्ष महाजन

Monday, February 12, 2018

फासला रखना हमेशा अच्छे हों जितने ये लोग


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फासला रखना हमेशा अच्छे हों जितने ये लोग,
होती मीठी सी ज़ुबाँ अंदर से ज़हरीले ये लोग ।
मुस्कुराते रहते हैं ये......फूल कांटों संग भी,
ये हुनर सिखला दे कोई क्यूँ हैं पथरीले ये लोग ।

-----------------हर्ष महाजन

ख़्वाबों का सिलसिला क्या बताऊँ ऐ 'हर्ष,



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ख़्वाबों का सिलसिला क्या बताऊँ ऐ 'हर्ष,
हालात-ए-इश्क से बे-खबर लगता है शायद तू |

_______हर्ष महाजन

यूँ ही मुहब्बत में बर्बाद होना किसे अच्छा लगता है


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यूँ ही मुहब्बत में बर्बाद होना किसे अच्छा लगता है,
मगर हौंसिले बुलंद हों तो हर ज़ख्म सुहाना लगता है |

_______________________हर्ष महाजन

इतना भी तो आसां नहीं किसी शेर को कह पाना


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इतना भी तो आसां नहीं किसी शेर को कह पाना,
इक-इक लफ्ज़ मुहब्बत हार कर पिरोना पड़ता है |

___________________हर्ष महाजन

कुछ दर्याफ़्त करना भी अब गुनाह सा लगता है,


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कुछ दर्याफ़्त करना भी अब गुनाह सा लगता है,
भुला दो तुम भी वो लम्हें यही वफ़ा सा लगता है |

___________________हर्ष महाजन